Monday, September 27, 2010

अमर शहीद भगत सिंह के नाम

हम सभी २ अक्टूबर बड़ी धूमधाम से मनाते हैं किसी भी बड़े या बच्चे से पूछो तुरंत जवाब मिलता है कि आज महात्मा गाँधी का जन्म दिन है किन्तु अफ़सोस जिस महान योद्धा कि कहानियां हम बचपन से पढ़ते चले आए हैं उसी का जन्मदिन भूल जाते हैं ९०% युवाओं को २७ सितम्बर के बारे कुछ भी नहीं मालूम जब उन्हें बताओ तो हैरत से कहते हैं अच्छा हमें तो पता ही नहीं था कि आज भगत सिंह का जन्म दिन है कैसी विडंबना है कि जिस देश कि खातिर इस बहादुर नौजवान ने खुद को हँसते हँसते फासी के हवाले कर दिया आज उसी को आज ये देश भूल चुका है मेरी सभी नौजवानों से अपील है कि आज के दिन इस महान योद्धा को याद करें और दुसरो को भी बातें और भगत सिंह के सपनो को सच करने का संकल्प लें ये ही राष्ट्र क उस सच्चे सपूत के लिए सच्ची श्रृद्धांजलि होगी ।

Thursday, September 9, 2010

MYTHOUGHT

Hello World ! I'm here to amaze all of you as much as I can with my own thoughts. so just wait.............

New Author

Ramendra Kumar Soni

Friday, August 20, 2010

About the world's extreme power

शुरुआत  करते हैं रावण से ,आप लोग सोच रहे होंगे की मैंने रावण को अपना  आदर्श क्यों चुना तो सबसे पहले मै यह बताना चाहूँगा की वो संसार का सबसे बड़ा ज्ञानी पुरुष था ,यहाँ तक की मरने के पहले श्री राम ने लछमन  से कहा था की जाओ और रावण के चरणों के पास खड़े होकर राजनीती शास्त्र की शिक्षा ग्रहण करो,दुसरे यह की रावन ने भले ही सीता का अपहरण किया हो लेकिन उसने कभी सीता के साथ जबरदस्ती नहीं की भले ही उसको कई तरह से डराया ,धमकाया लेकिन कभी अकेलेपन का फायदा नहीं उठाया,पर क्या केवल इतने के ही लिए उसके पुतले को हर साल जलाया जाता है,क्या उसका ये अपराध इतना बड़ा था की उसको हर साल जलाने की जरुरत पड़ती है,अगर ऐसा है तो आज न जाने कितनी ही लड़कियों की इज्जत लूट जाती है,कितनो ही लड़कियों को शरीर बेचने के लिए मजबूर  किया जाता है, कितनी बहुओं को दहेज़ के लिया जला दिया जाता है,तो क्या आज समाज के ये रावन उस रावण से कम हैं,क्या इनको नहीं जलाना चाहिए,और अगर सबको जलाने के लिए सूची बने तो शायद हम बूढ़े हो जाएँगे,अब फैसला करना है की रामायण का रावण आज के रावणों की तुलना में कितना बुरा था या अच्छा था.

Wednesday, August 18, 2010

क्या देश ऐसे विकसित होगा ।

प्रिय मित्रों इस बार आपका ध्यान अलीगढ़ और आगरा कि ओर दिलाना चाहूँगा किसानो ने आन्दोलन शुरू कर दिया है राज्य सरकार और किसान नेता आमने सामने हैं और संघर्ष अपने चरम पर है अखबारों कि सुर्ख़ियों में प्रतिदिन ये ही ख़बरें देखने को मिल रही हैं मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या भारत ऐसे ही विकसित होगा ? जिस देश में किसान और मजदूर संतुष्ट नहीं हो वो देश कभी विकसित हो ही नहीं सकता सरकारें आती जाती रहती हैं और विकास के खोखले दावों के बीच सच्चाई के धरातल पर केवल लुटती हुई इंसानियत और भूख और गरीबी से मरते हुए इंसानों कि आत्माएं PCI (प्रति व्यक्ति आय) और GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के धोखे से भरे आकड़ों से तृप्त कि जाती रहती हैं। कल एक गाँव में पुलिस ने किसानो को घरों से निकल निकल कर पीटा यही तो हमारे विकसित होने की निशानी है इससे पहले नंदीग्राम और सिंगुर की घटना में जिन पार्टियों ने जो हाय तौबा मचाई आज वही इस मसले पर चुप चाप बैठी हैं राजनीति का खेल अपने चरम पर है किसानों की चिंता किसे है सभी अपनी अपनी रोटियां सेकना चाहते हैं।

हाल ही में मेरी कुछ नौजवानों से चर्चा हुई वो देश की तरक्की से बेहद संतुष्ट हैं और देश को सुपर पॉवर मानते हैं मेरी उनसे विनती है की वो अपनी वातानुकूलित कमरों से बहार आयें और ग्रामीण इलाकों में जा कर करीब से लोगों की हालत देखें तब उनकी समझ में आयेगा की सच्चाई क्या है और उन्हें क्या दिखाया सुनाया जा रहा है दोस्तों ये देश तब तक विकसित नहीं हो सकता जब तक यहाँ के सिस्टम को सिरे से नहीं बदला जाता

धोखे के लोकतंत्र से सर्वहारा की तानाशाही अच्छी होती है .....................................इन्किलाब जिंदाबाद

Saturday, August 14, 2010

आज़ादी के मायने





प्यारे साथियों और दोस्तों आज काफी समय के पश्चात् युवा पॉवर पर आपसे मुलाकात हो रही है सर्वप्रथम तो इतने दिनों के अंतराल के लिए आप सब से क्षमा चाहता हूँ दोस्तों आज स्वतंत्रता दिवस है और सब तरफ लोग एक दूसरे को आज़ादी की बधाइयाँ दे रहे हैं लेकिन मैं शर्त लगा सकता हूँ कि इनमे अधिकतर को ये भी नहीं मालूम होगा कि आज़ादी किसे कहते हैं और जिसे वो आज़ादी समझते हैं वो क्या सच में आज़ादी है या फिर आज़ादी के नाम पर हमें ठगा जा रहा है


ये वो azadi nahi है जिसका सपना भगत सिंह चन्द्र शेखर आज़ाद और देश के शहीदों ने देखा था सिर्फ राज करने वालो के बदल जाने से आज़ादी नहीं मिलती कल जो जगह अंग्रेजों कि थी वो आज अपने ही देश के लोगों ने ले ली है न ही वू नीतियां बदलीं और न ही वो मानसिकता बदली जिसे बदलने के लिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने हँसते हँसते अपने को फासी के तख्ते के हवाले कर दिया था भगत सिंह ने जो सपना आज़ाद भारत का देखा था वो अभी तक अधूरा है जिस सामाजिक बराबरी के लिए भगत सिंह ने अपना तन मन निछावर कर दिया वो आज भी सपना ही बनी हुई है.



दोस्तों आओ आज स्वतंत्रता दिवस के इस पवन अवसर पर मिल कर संकल्प ले कि भगत सिंह के अधूरे सपने को हम पूरा करेंगे और खुद को भगत सिंह का सच्चा उत्तराधिकारी साबित कर के रहेंगे................

इनकिलाब जिंदाबाद



Wednesday, July 23, 2008

करार - तकरार - सरकार : लोकतंत्र पर प्रहार

यदि एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति से प्रश्न किया जाए की लोकतंत्र क्या है तो उसका उत्तर होगा की एक राज्य की एक ऐसी प्रणाली जिसमे जनता ही राजा होती है दुसरे शब्दों में जनता द्वारा स्वयं पर राज्य करना ही लोकतंत्र है किंतु ऐसा लगता है की भारत में लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल गई है यहाँ पर जनता राजा को चुनती ज़रूर है मगर यह शासन जनता का नही होता है जिसके हाथ में सत्ता की बागडोर आई वही अपने आप को सर्वशक्तिमान समझने लगता है अब कल का ही प्रकरण लीजिये संसद में नोटों की गड्डियां लहराते हुए कुछ भा० जा० पा० सांसदों ने बताया की श्रीमान अमर सिंह ने उन्हें खरीदने की कोशिश करी। यह शर्मनाक वाकया पूरे देश में देखा गया। अब सच्चाई चाहे जो भी हो मगर ये है तो आखिर लोकतंत्र का अपमान ही सत्ता की चमक दूर से दिखने पर ही यदि अमर सिंह इस प्रकार के कार्य कर रहे हैं तो सत्ता प्राप्त होने के बाद तो ये सारे देश को खरीदने निकल पडेंगे।
बहरहाल जो भी हो बहुत ही नाटकीय ढंग से सरकार तो बच ही गई है और अब परमाणु करार भी हो जाएगा किंतु सवाल ये उठता है की क्या देश का कुछ भला भी होगा अथवा ये भी सरकार और सरकारियों की जेबे भरेगा। वैसे अमेरिका की चमचागिरी करने का कुछ न कुछ फायदा तो सरकारियो को होगा ही सबसे मजेदार समीकरण तो समाजवादी पार्टी के गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश में देखने को मिलेंगे जहा दो चिर प्रतिद्वंदी आमने सामने आ गए हैं केन्द्र की सत्ता की हनक लिए समाजवादी पार्टी व प्रदेश की सत्ता पर बहुमत से अपना कब्ज़ा ज़माने वाली ब० स० पा० जो की अब वाम दलों के साथ दिखाई दे रही है। आरोपों प्रत्यारोपों का एक नया दौर प्रारम्भ होने जा रहा है। सत्ता की इस लड़ाई में जीत किसकी होगी ये तो महज़ वक़्त की बात है मगर हारना तो जनतंत्र को ही पड़ेगा ये भी तय है।
जो भी हो इस चक्की में अंत में पिसना जनता को ही पड़ता है सरकार किसी की भी आए जनता ही मारी जाती है कभी आतंकवादियो द्वारा तो कभी महंगाई द्वारा। परमाणु करार होना बहुत ज़रूरी है चाहे इसके लिए महंगाई आम आदमी की कमर क्यों न तोड़ दे।

आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में
इमरान अहमद 'अजनबी'
जय हिंद

Friday, July 11, 2008

परमाणु करार : क्या सही क्या ग़लत

वर्तमान समय में देश में हर व्यक्ति परमाणु करार को लेकर अपनी अपनी राय कायम कर रहा है ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या लोगो को परमाणु करार के बारे में पुरी जानकारी है या वे केवल समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों द्वारा दी गई अधि अधूरी जानकारी के बल पर परमाणु करार को सही या ग़लत ठहरा रहे हैं, मित्रों तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि आज देश को परमाणु ऊर्जा कि आवश्यकता है और साथ ही अपनी संप्रभुता व स्वतंत्रता भी बनाये रखना ज़रूरी है। जहाँ तक वामपंथियों का सवाल है उनका विरोध भी अपनी जगह जायज़ है हर संगठन के विचार अलग अलग होते हैं मगर यहाँ पर हमें स्वयं अपनी एक विचारधारा विकसित करनी होगी क्योंकि मामला केवल परमाणु ऊर्जा का नही हमारी संप्रभुता का भी है। सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि करार के बाद हमारी स्थिति क्या होगी इस सन्दर्भ में हमारे सामने तीन उदाहरण भी मौजूद हैं जिसमे से एक ब्रिटेन जिसने कि अपनी संप्रभुता अमेरिका के हवाले कर दी है और कमोपेश यही स्थिति पश्चिम एशिया के सभी देशो कि है हाँ इरान एक अपवाद ज़रूर है। दूसरा उदाहरण फ्रांस का है जो कि अमेरिका के नजदीक होते हुए भी अपनी संप्रभुता को कायम रखे हुए है विएतनाम और इस्राइल अदि जैसे मुद्दों पैर अपनी स्वतंत्र राय रखता है। यानी की वह अमेरिका के दबाव में नही है। तीसरा उदाहरण चीन का है वैचारिक रूप से अमेरिका का परम शत्रु होते हुए भी चीन अमेरिका के लिए अपने व्यापारिक रस्ते खोले हुए है और जितने कम समय में चीन ने अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति करी है वह विश्व राष्ट्रों के लिए एक नजीर हो सकती है।

अब हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि उपरोक्त तीनो उदाहरणों में भारत किस भूमिका में है वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए इस बात कि बहुत अधिक सम्भावना है कि भारत कि स्थिति भी जल्द ही ब्रिटेन के जैसी होने जा रही है। ये भी ही सकता है कि भारत एक अमेरिकी नाभिकीय उपनिवेश बन क रह जाए क्योंकि भारत के समुद्र तटों पर थोरिअम का अथाह भंडार मौजूद है यह भी सम्भव है कि अमेरिका हमसे वाही थोरिअम खरीद कर उसे उरेनिं में बदल कर हमें ही बेच दे। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए हम सभी का फ़र्ज़ है कि परमाणु करार के बारे में पूरी जानकारी लिए बिना कोई राय न कायम करें और सरकार को चाहिए कि जनता को विशवास में लिए बिना परमाणु करार पर आगे न बढे। वरना यह कदम देश कि आन्तरिक और वाह्य स्थितियों में कोई भी परिवर्तन ला सकता है।

मित्रों इस विषय पर आपकी अमूल्य राय में प्रतीक्षारत

इमरान अहमद 'अजनबी'