Wednesday, July 23, 2008

करार - तकरार - सरकार : लोकतंत्र पर प्रहार

यदि एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति से प्रश्न किया जाए की लोकतंत्र क्या है तो उसका उत्तर होगा की एक राज्य की एक ऐसी प्रणाली जिसमे जनता ही राजा होती है दुसरे शब्दों में जनता द्वारा स्वयं पर राज्य करना ही लोकतंत्र है किंतु ऐसा लगता है की भारत में लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल गई है यहाँ पर जनता राजा को चुनती ज़रूर है मगर यह शासन जनता का नही होता है जिसके हाथ में सत्ता की बागडोर आई वही अपने आप को सर्वशक्तिमान समझने लगता है अब कल का ही प्रकरण लीजिये संसद में नोटों की गड्डियां लहराते हुए कुछ भा० जा० पा० सांसदों ने बताया की श्रीमान अमर सिंह ने उन्हें खरीदने की कोशिश करी। यह शर्मनाक वाकया पूरे देश में देखा गया। अब सच्चाई चाहे जो भी हो मगर ये है तो आखिर लोकतंत्र का अपमान ही सत्ता की चमक दूर से दिखने पर ही यदि अमर सिंह इस प्रकार के कार्य कर रहे हैं तो सत्ता प्राप्त होने के बाद तो ये सारे देश को खरीदने निकल पडेंगे।
बहरहाल जो भी हो बहुत ही नाटकीय ढंग से सरकार तो बच ही गई है और अब परमाणु करार भी हो जाएगा किंतु सवाल ये उठता है की क्या देश का कुछ भला भी होगा अथवा ये भी सरकार और सरकारियों की जेबे भरेगा। वैसे अमेरिका की चमचागिरी करने का कुछ न कुछ फायदा तो सरकारियो को होगा ही सबसे मजेदार समीकरण तो समाजवादी पार्टी के गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश में देखने को मिलेंगे जहा दो चिर प्रतिद्वंदी आमने सामने आ गए हैं केन्द्र की सत्ता की हनक लिए समाजवादी पार्टी व प्रदेश की सत्ता पर बहुमत से अपना कब्ज़ा ज़माने वाली ब० स० पा० जो की अब वाम दलों के साथ दिखाई दे रही है। आरोपों प्रत्यारोपों का एक नया दौर प्रारम्भ होने जा रहा है। सत्ता की इस लड़ाई में जीत किसकी होगी ये तो महज़ वक़्त की बात है मगर हारना तो जनतंत्र को ही पड़ेगा ये भी तय है।
जो भी हो इस चक्की में अंत में पिसना जनता को ही पड़ता है सरकार किसी की भी आए जनता ही मारी जाती है कभी आतंकवादियो द्वारा तो कभी महंगाई द्वारा। परमाणु करार होना बहुत ज़रूरी है चाहे इसके लिए महंगाई आम आदमी की कमर क्यों न तोड़ दे।

आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में
इमरान अहमद 'अजनबी'
जय हिंद

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